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गढ़वाली-कुमाउनी भाषा की क्रांति

Uttarakhand
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मा० सतपाल महाराज जी का २ सितम्बर का लोक सभा में वक्तव्य सबको स्तब्ध कर देने वाला था मानो जेसे शेर

रहा हो परन्तु वास्तव में ये दहाड समस्त उत्तराखंड की थी | सतपाल महाराज ने केवल एक माध्यम का काम किया |

हमारी भाषा गढ़वाली कुमाउनी को सविधान की 8 वी अनुसूची में शामिल होना ही चाहिये | महाराज जी ने जिस प्रकार इस विषय को संसद में रखा मुझे नहीं लगता की कोई इतने दृढ़ता के साथ संसद में रख पाता | इसके साथ इस बात का दुःख भी हुआ की हमें 65 साल लग गये अपनी बात को रखने की लिए इस बात के लिए सतपाल महाराज तारीफ करनी ही होगी | महाराज जी ने अपने वक्तव्य के माध्यम से पूरे उत्तराखंड को एक सूत्र में समेटने का प्रयास किया | महराज जी ने लोक कवि व गीतकार नरेंद्र सिंह नेगी की कुछ कविताओ की पंक्ति को बड़े ही सुंदर ढंग से संसद में रखा | तथा इसके साथ ही महाराज जी ने उत्तराखंड का प्रसिद्ध लोक गीत बेदु पाको बारमाशा के बोल भी संसद में बोले |ये पल सबको मंत्रमुग्ध करने वाला था | महाराज जी ने देव भाषाओ का अपने ही अंदाज में विस्तृत वर्णन किया इसका असर अन्य सांसदों के उपर देखने का मिला कुछ सांसदों ने तो महाराज जी से उत्तराखंड के चारो धामों दिखाने तक के लिए आग्रह किया | महाराज जी के ही कारण लोक सभा में केवल उत्तराखंड ही छाया रहा और सभी सांसदों ने इस प्राइवेट मेम्बर बिल को खुले दिल से स्वीकार किया | २ सितम्बर को रात ८:३० बजे महाराज जी का interview लोक सभा टीवी पर आया जिसमे सतपाल महाराज की उत्तराखंड की दूरदर्शी सोच के बारे में पता चलाShri Satpal Ji Maharaj

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